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खुद करे अपनी कोशिशो का आंकलन

इंसान इस दुनिया मे पैदा होता है तो किसी के घर पर खुशियां मनाई जाती है मिठाई बांटी जाती है
धीरे धीरे वह बड़ा होता है जब वह 1 साल का हो जाता है तो उसकी मां उसे बोलना सिखाती है और वह जब डेड या दो साल का होता हे तो उसकी माँ उसे चलना सिखाती है लेकिन वह बच्चा एक बार गिरता है उसकी माँ वापस उठाती हे लेकिन वह वापस गिरता है मां वापस उठाती है फिर गिरता हे माँ उठाती है ऐसा बार बार होता रहता है जब उसकी माँ को लगता है कि अब यह कोशिश करके चल जाएगा तो माँ उसे अपने हाल में छोड़ देती है फिर बच्चा मा को अपने पास ना देख कर खुद ही कोशिश करता है चलने की यकीन मानिए उसको चलने में कोई दिलचस्पी नही है वह सिर्फ अपनी माँ को ढूढना चाहता है इस लिए वह दीवार के सहारे या घुटने के बल रेंगता हुआ अपनी माँ के पास पहुच जाता है क्योंकि उसे अपने मा की आदत पड़ चुकी है इससे उसे किसी बात का खोफ़ नही रहता कि वह गिर जाएगा बस उसे किसी तरह से अपनी मां के पास पहुचना है और वह ये सब कर जाता है ।
इस
इंसान अपने भाग्य का निर्माण खुद करता है बस उसे अपने लक्ष्य तक पहुंचने की जिद्द होनी चाहिए ।
जय हिंद 

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